प्रधानमंत्री की 24 अप्रैल को मिथिला यात्रा

             प्रधानमंत्री की 24 अप्रैल को मिथिला यात्रा 



         मोदी की मिथिला यात्रा से उम्मीदें उफान पर 



     मिथिलांचल की उपेक्षा:जनांदोलन की त्रासदी  




नई दिल्ली / पटना ( डॉ.समरेन्द्र पाठक ) । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 24 अप्रैल को मिथिला की यात्रा करेंगे। इसके लिए विदेश्वर स्थान में सभा को सफल बनाने के लिए जोर शोर से तैयारियां चल रही है। राजग गठबंधन के सभी दल प्रधानमंत्री की इस यात्रा को सफल बनाने में लगे हैं। खासकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में खासा उत्साह है। इसके साथ ही करोड़ों मिथिला वासियों की कई उम्मीदें हैं। 



इस वर्ष बिहार विधानसभा का चुनाव है। राजग गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है,क्योंकि महा गठबंधन भी जोर शोर से लगा है। मिथिला क्षेत्र पर दोनों ही गठबंधन की नजर है, क्योंकि मिथिला में 108 विधानसभा क्षेत्र है और यहां का इतिहास रहा है, कि जिस दल को वोट दिया है, उसकी झोली में एक मुश्त 100 के आसपास सीटें मिली है और उस पार्टी की सरकार बनी है।



उधर महा गठबंधन की समस्या यह है,कि इस बार अगर सत्ता नहीं मिली तो भाजपा के सत्ता में आने से वह लंबे समय के लिए सत्ता से दूर हो जाएगा।केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मिथिला में कोसी नदी पर महासेतु एवं मैथिली भाषा को अष्टम सूची में शामिल किया था और वर्ष 2005 में पिछले 15 साल के लालू-राबडी सरकार का अंत कर नीतीश कुमार की अगुवाई में राजग की सरकार बनी थी। इस चुनाव में मिथिला से राजग को सर्वाधिक सीटें मिली थी। 



चौपट उद्योग धंधा एवं पलायनवाद:-मिथिला के लोग लगातार अपनी उपेक्षा से परेशान हैं। यहां के लोगों को प्रति वर्ष दहार एवं सूखा का सामना करना पड़ता है। उद्योग- धंधे चौपट होने से पिछले तीन दशकों में पलायनवाद  की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है। सकरी, रैयाम एवं लोहट की चीनी मिलें बंद है। अशोक पेपर मिल एवं ठाकुर पेपर मिल का यही हाल है। कटिहार का जुट मिल,सहरसा एवं मधेपुर का दुग्ध मिल चार दशकों से बंद पड़ा है। भागलपुर एवं पंडाल का रेशम उद्योग   और मधुबनी खादी सरकारी उपेक्षा से अस्तित्व खोते जा रहा है। हस्तकरघा उद्योग खत्म होने से अल्पसंख्यको की आय का जरिया समाप्त है। 



इन औद्योगिक इकाईयों के बंद होने से न सिर्फ मिथिला में भयंकर बेरोजगारी बढ़ी है, बल्कि पलायन के साथ-साथ कृषि पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। किसानों ने गन्ना एवं जूट की खेती करना प्रायः बंद कर दिया है। दुधारू पशुओं को पालना भी लगभग समाप्त है। बाजार एवं संसाधन के अभाव में मछली उद्योग के लिए विश्वप्रसिद्ध मिथिला के बाजारों में इन दिनों आंध्र प्रदेश से आयातित मछलियाँ खूब बिक रही है।पिछले दिनों टैग के नाम पर मखाना उद्योग को भी विवादित बना दिया गया। इसका गहरा असर मखाना उद्योग से जुड़े लोगों पर पड़ा है।


मिथिला में बाढ़ की समस्या:मिथिला में यह समस्या आजादी के पहले से है। कोसी, कमला, गंडक, बुढ़ी गंडक एवं अधवारा समूह की अन्य सहायक नदियां मिथिला में हर वर्ष  कहर ढाती है। इसके निदान के लिए इन नदियों पर बाँध बनाए गए, लेकिन इन नदियों का जल श्रोत नेपाल होने के कारण उसके रहमो कदम पर जीना पड़ा रहा है। नेपाल अपनी सुविधा के मुताबिक पानी छोड़कर मिथिला में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है। 


मिथिला में बाढ़ की समस्या का समाधान ढूंढने के लिए किए गए प्रयासों का इतिहास भी बहुत पुराना है।अंग्रेज़ी शासनकाल से ही बाढ़ के समाधान के लिए कई आयोग बने और कई प्रयास किए गए, लेकिन यही बात सामने आई कि मिथिला की बाढ़ समस्या के लिए नेपाल में हाई डैम का निर्माण हो। लेकिन आजादी के 75 वर्ष बाद भी केंद्र की सरकारें नेपाल से बात कर इस समस्या का स्थायी निदान नहीं कर पायी है। 


विमानन सेवा एवं एम्स में फंसा मिथिला:-आज कल नेताओं में इस बात के लिए होड़ लगी है, कि हमने दरभंगा से विमानन सेवा की शुरुआत की। एम्स  निर्माण के लिए पहल की, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम कि दरभंगा में  आजादी से पहले विमानन सेवा थीं। यह बात अलग है,कि उस ज़माने में यह सुविधा बड़े लोगों एवं राज परिवारों तक सीमित थी। इसी तरह नेहरू- इंदिरा के ज़माने में कॉंग्रेस के कद्दावर नेता एवं केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री रहे पं. हरि नाथ मिश्र के सौजन्य से डीएमसीएच का निर्माण हुआ। वहां के कई चिकित्सकों द्वारा लिखी गयी पुस्तकें एम्स के बच्चों को आज भी पढ़ाई जाती है। 


मिथिला राज्य की मांग:-वैसे तो पृथक मिथिला राज्य का इतिहास आजादी से पहले तक रहा है। दरभंगा राज परिवार को मिथिला नरेश के रूप में जाना जाता था, लेकिन आजादी के बाद मिथिला राज्य का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो गया। रामगढ़ के कॉंग्रेस अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी तत्कालीन मिथिला केसरी स्व.जानकी नंदन सिह ने पृथक मिथिला राज्य की मांग रखी, मगर इस मांग को बड़ी चतुराई से ठुकरा दी गयी। उसके बाद से निरंतर पृथक मिथिला राज्य की मांग की जा रही है, लेकिन राजनीतिक कारणों से इस मांग की अभी तक पूर्ति नहीं की जा सकीं है।

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