मंडी सचिव और व्यापारियों का गठजोड़
मंडी सचिव और व्यापारियों का गठजोड़
सरकारी राजस्व को करोडो का नुकसान
गोरखधन्धे में शामिल लोगों पर कब होगी कार्रवाई !
धौलपुर। जिले की कृषि उपज मंडी सचिव और व्यापारियों का गठजोड़ सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है कृषि उपज मंडी कर्मचारी और व्यापारी सरकार के इस पैसे की बंदरबांट करने में लगे हुए हैं जिसके कारण सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। इस संबंध में स्थानीय लोगो की ओर से जिले के प्रभारी मंत्री जवाहर सिंह बेढम को शिकायत की है मामले की गंभीरता को देखते हुए गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेडम ने पूरे मामले की जांच कर आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिए हैं। दरअसल वर्तमान में प्रतिदिन 1500 से 2000 बोरी की जावक है, जिसका मंडी टैक्स वसूला जाए तो सरकार को काफी आय होगी। लेकिन व्यापारी और मंडी कर्मचारी सांठगांठ कर बिना टैक्स दिए इन बोरियों को निकाल रहे हैं और व्यापारी टैक्स की चोरी कर अपनी जेबें भर रहे हैं, जबकि मंडी के रजिस्टर में नाकुछ ही बोरी का इंद्राज कर रहे हैं। दरअसल मंडी सचिव द्वारा दो प्रकार के अनुज्ञा पत्र जारी किए गए हैं जिनमें क वर्ग के व्यापारी एवं ख वर्ग के व्यापारी हैं क वर्ग के व्यापारियों को विक्रय पर्ची जारी की जाती है जिससे वह किसानों से माल खरीद कर टैक्स जमा कर सके और उन्हें भुगतान कर सके इसके अलावा ख वर्ग के व्यापारियों के लिए शर्त है कि यह मंडी टैक्स पैड माल खरीदेंगे चाहे वह मंडी के अंदर से खरीदे या वह बाहर से वह सीधा माल किसानों से नहीं खरीद सकते हैं इस माल को बाहर भेजने के लिए क वर्ग और ख वर्ग के लिए निर्यात प्रतिवेदन गेट पास जो कि सचिव के द्वारा जारी किए जाते हैं, निर्यात प्रतिवेदन प्राप्त करने के लिए फर्म को सर्वप्रथम अपने लेटर हेड पर आवेदन देना होता है कि हमें निर्यात प्रतिवेदन की आवश्यकता है उसके बाद उसका उचित शुल्क जमा कर 'निर्यात प्रतिवेदन पुस्तक संख्या डालकर व्यापारी को दी जाती है पूर्व में जारी की हुई निर्यात प्रतिवेदन की किताब जमा करनी होती है जिससे कि मिलान हो सके कि कितना माल व्यापारी के द्वारा निर्यात किया गया है निर्यात प्रतिवेदन की पुस्तक में तीन प्रति में छपी होती है जिसमें एक कॉपी माल के बिल बिल्टी के साथ जाती है दूसरी कॉपी गेट पर या मंडी परिसर में देनी होती है तीसरी कॉपी स्वयं व्यापारी के पास मौजूद रहती है, जब माल मंडी प्रांगण से बाहर जाता है तो वह मंडी गेट से मंडी कर्मचारी के दुबारा सत्यापित होकर जाता है कि उक्त माल कहां जा रहा है किस फर्म से जा रहा है इस फर्म का टैक्स कंप्लीट है या नहीं है, मंडी सचिव द्वारा निर्यात प्रतिवेदन की किताब स्वयं के द्वारा छपबाई जाती है जिसका पूर्ण स्टॉक रजिस्टर बना हुआ होता है, व्यापारियों द्वारा जब माल को राज्य एवं राज्य से बाहर भेजा जाता है तो रास्ते में जांच दल के द्वारा किसी भी गाड़ी का सत्यापन करना होता है तो वह मंडी सचिव को अवगत कराता है एवं मंडी सचिव ऑफिस कॉपी के द्वारा उसका सत्यापन कर भेजते हैं कि उक्त गाड़ी हमारे मंडी परिसर से गई है, तिलहन पर मंडी टैक्स के साथ जीएसटी टैक्स भी 5 प्रतिशत लगता है दरअसल मंडी सचिव द्वारा अपने मनमाने तरीके से निर्यात प्रतिवेदन किताब का वितरण किया जाता है क्योंकि वह अपने स्वयं के द्वारा छपाई गई है जो कि वह पूर्ण रूप से अवैध है उत्तर प्रदेश के शमशाबाद में ऑयल मिल है जहां धौलपुर के बिल से करोड़ों रुपए की सरसों खाली कराई जाती है उसे मिल में खाली करते समय कांटा पर्ची निर्यात प्रतिवेदन बिल बिल्टी आदि जमा करने पर ही सरसों की गाडियां खाली करई जाती है जो भी मिल 'को निर्यात प्रतिवेदन भेजें जा रहे हैं वह कूट रचित दस्तावेज हैं सरसों के बिल जीएसटी पोर्टल पर उपलब्ध है लेकिन मंडी टैक्स के नाम पर जमा नहीं हो रहा है जबकि मिल द्वारा सारा रुपया आरटीजीएस के माध्यम से इन फर्मों के अकाउंट में भेजा जाता है क्योंकि सरसों को बिना ई-वे बिल के नहीं भेजा जा सकता है।
किसानों को जो भुगतान किया जाता है वह 1 की रसीद टिकट वाउचर पर लगाकर हस्ताक्षर लिए जाते हैं व रुपए अंकित किए जाते हैं कि उक्त किसान ने रुपए प्राप्त किए हैं, उसके साथ संलग्न आधार कार्ड और पैन कार्ड की कॉपी की जाती है जबकि इन व्यापारियों के द्वारा ऐसा कोई भी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि उनके द्वारा बैंकों से निकाला गया रुपया किसी किसानों को दिया हो मंत्री को दी शिकायत में बताया है कि किसी भी व्यापारी के पास ना तो मंडी प्रवेश पर्ची है ना ही मंडी टैक्स की जमा की रसीद है ना ही प्राप्त निर्यात प्रतिवेदन की शुल्क की रसीद है। इस गोरखधंधे में कई फर्में शामिल हैं जो सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लगा रहे हैं। अगर इस पूरे मामले की जांच जमीनी स्तर की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी और सरकार को राजस्व लाभ होगा।
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