हक़ीक़त से निग़ाहें मूँद कर इंसान चलता है- बलजीत सिंह बेनाम
हकीकत से निगाहें मूदँ कर इंसान चलता है
बलजीत सिंह बेनाम. हिसार(हरियाणा)
मोबाईल:9996266210
ग़ज़ल
तसव्वर से कहाँ हर पल नया चेहरा निकलता है
हक़ीक़त से निग़ाहें मूँद कर इंसान चलता है
कभी जब सोचते हैं तब कहीं लावा पिघलता है
चमन का बाग़बाँ ही क्यों सभी कलियाँ मसलता है
किसी को चाँद कहने की मिली है ये सज़ा मुझको
नज़र भर कर जो देखूँ चाँद तो दिल मेरा जलता है
उसे सहरा की लम्बी दूरियाँ तय करनी पड़ती हैं
अगर क़तरा समंदर से कभी बच कर निकलता है
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