ज्यो की त्यों धर दी चदरिया

                                    जयपुर l राजस्थान में भाजपा के संस्थापकों में से रहे प्रो. ललित किशोर चतुर्वेदी कुशल प्रशासक और कठोर निर्णय लेने के लिए कार्यकर्ताओ में जाने जाते थे वे जितने कठोर नजर आते थे उतने ही भावुक और कार्यकर्ताओ के संगरक्षक के रूप में भी अपना स्थान रखते थे वे सामान्य कार्यकर्ता हो या वरिष्ठ पदाधिकारी सब के बीच समन्वय रखने वाले एक मात्र नेता रहे हैं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष या सांसद होते हुये भी वे कार्यकर्ता को  इस प्रकार का अहसास देते थे जैसा की परिवार का बुजुर्ग या मुखिया देता हैं !मुझे वर्ष 1994से 2007तक आदरणीय चतुर्वेदी जी के साथ एक छाया की तरह रहने का अवसर मिला इस अवधि में मेने उनको कई रूप में देखा मेने कभी उनमे मेरे गुरु का रूप देखा तो कभी पिता का कभी बॉस का तो कभी बराबर के मित्रो जैसा वे हर भूमिका में ऐसे लगते थे की वे सिर्फ सिर्फ मेरे ही हैं जो बात में निसंकोच रूप से मेरे पिता श्री को कह सकता था वैसे ही में अपनी बात आदरणीय ललित जी के साथ भी कर लेता था उनका मेरे प्रति अति स्नेह और विश्वास ने मेरे कुछ विरोधी भी खड़े कर दिए परन्तु ललित जी द्वारा कहे गए शब्द प्रगति पथ पर चलते रहो जो साथ चले उसका सहयोग लो और जो बाधक बने उसे रास्ते में पड़े पथर के समान मानकर राह से हटादो खैर जोभी हैं l आदरणीय ललित जी छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी भाजपा के राष्ट्रीय नेताओ से बहुत ही आसानी और सम्मान के साथ मिलवा देते थेl जब वे संघठनात्मक दौरे पर जाते तो होटल, डाकबंगला या सर्किट हॉउस में ठहरने की जगह कार्यकर्ताओ के निवास पर ही रुकना और पारिवारिक माहौल में रहना पसंद करते थे कई बार श्री चतुर्वेदी जी के इस निर्णय से उनके स्टाफ को भी परेशानी उठानी पड़तीl एक बार की बात हैं चतुर्वेदी जी के साथ मुझे अजमेर जिले के नसीराबाद क्षेत्र में जाने का अवसर मिला वहां हमने रात्रि भोज पूर्व विधायक किशन चंद कोगटा जी के निवास पर किया भोजन के पश्चात में सोच रहा था रात्रि विश्राम किसी होटल या गेस्ट हॉउस में करेंगे मुझे कोगटा जी के घर में भी इतनी जगह नहीं दिख रही थी की हम सभी वहां रुक सके भोजन के बाद श्री चतुर्वेदी जी ने कोगटा जी को कहा बिस्तर छत पर लगवा दो हम सब वही विश्राम करेंगे l आदरणीय के इस निर्णय को सुनकर सभी लोग अवाक थे बोले तो क्या बोले रात्रि विश्राम छत पर ही हुआ कुल मिलाकर एक छोटे से छोटा कार्यकर्त्ता भी चतुर्वेदी जी को सहज भाव से अपने घर आमंत्रित कर लेता था l पूरे राजस्थान में हर क्षेत्र में कार्यकर्ताओ के निवास, दुकान पर चाहे 5 मिनट ही रुके यह उनकी आदत सी बनगई थी l बीकानेर जिले के लूणकरणसर में जनसंघ के समय के कार्यकर्त्ता व पार्षद रहे दर्जी परिवार के समक्ष बाढ़ के दौरान विपत्ति आगई उनका छोटा सा मकान बाढ़ से बह गया कार्यकर्त्ता की पीड़ा से ललित जी बहुत भावुक हो गए l उन्होंने लूणकरणसर जाकर दुःखी परिवार से बात की और आश्वस्त किया की तुम्हारा घर फिर से बनेगा और धुन के धनी चतुर्वेदी जी ने केवल 6माह में ही कार्यकर्ता को नए मकान में रहने का सौभाग्य प्रदान कर दिया की l कई बार व्यस्तता की वजह से कार्यकर्त्ता उनसे कुछ कहना चाहते तो वे उन्हें बात कहने का भी पुरा अवसर देते थे l कार्यकर्त्ता को अपने साथ कार में बैठाकर उसकी पूरी बात सुन ना और तत्काल निदान करना उनका स्वभाव था एक बार चतुर्वेदी जी झन्झुनु के दौरे पर गए उनके दौरे का समाचार पाकर कॉलेज में आंदोलन कर रहे हजारो छात्रों ने रास्ता जाम करदिया l   आंदोलन रत छात्र काले झंडे लेकर खड़े थे उग्र छात्रों को देख कर वाहन चालक और एस्कॉर्ट ने रास्ता बदलने की कोशिश की लेकिन चतुर्वेदी जी ने कहा वाहन छात्रों के पास ही लेकर चलो आंदोलन रत छात्रों से उन्होंने पूरी बात सुनी और कहा की आपकी समस्या वाजिब हैं lअब यह बताओ नारे बाजी ही करनी हैं या समस्या का समाधान हजारो छात्रों के बीच चतुर्वेदी जी के लिए एक कुर्सी लगा दी गई में भी उनके पीछे खड़ा था उन्होंने उसी समय तत्कालीन शिक्षा मंत्री व उच्च शिक्षा निदेशक से बात कर छात्रों की फेकेल्टी भरने और नए विषयो की समस्या का समाधान कराया छात्रो के  रोष व नारेबाजी से मोके पर मौजूद प्रशासन एस. पी, कलेक्टर किसी अनहोनी की सभावना को देख कर घबरा रहे थे l समस्या का समाधान होते ही मुर्दाबाद का नारा लगाने वाले छात्र चतुर्वेदी जी की जय जय कार कर उनका स्वागत कर रहे थे ! चतुर्वेदी जी हर कार्यकर्त्ता को उसकी बात उचित मंच पर ही कहने का निर्देश देते थे कार्यसमिति की बैठक में वे यह चाहते थे की बैठक औपचारिक नहीं होकर निर्णयातम्क को उनका कहना था बैठक के तीन नियम होते हैं प्रथम बैठक पूर्ण रूपेण अनुशासित हो, बैठक में निर्णय और योजना बने, बैठक का समापन पूर्ण उत्साह से हो केशोराय शुगर मिल के आंदोलन में चतुर्वेदी जी ने खुलकर भाग लिया राजकाज में बाधा और सड़क जाम करने के मामले में एफ आर भी दर्ज हुई राजस्थान में भाजपा कार्यकर्त्ताओ के पिता तुल्य नेता प्रो. ललित किशोर चतुर्वेदी को कोटि कोटि प्रणाम वंदन.                                 ज्यों की त्यों धरदी चदरिया                                            🙏🙏बात उस दिन की हैं जब आदरणीय ललित किशोर चतुर्वेदी जी ने भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और डा. महेश शर्मा ने कुर्सी संभाली भाजपा के तत्कालीन वरिष्ठ नेता जसवन्त सिंह जसोल एक दल के साथ पाकिस्तान स्थिति हिंगलाज माता के दर्शन को गए थे उनकी वापसी पर गडरा बॉर्डर पर स्वागत के लिए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में प्रो. ललित किशोर चतुर्वेदी बॉर्डर पर गएl  उनके साथ तत्कालीन प्रदेश संघठन महामंत्री प्रकाश चंद जी भी थे उन दिनों सत्ता और संघठन में कुछ खींच तान थी  l चतुर्वेदी जी स्वयं को अध्यक्ष पद पर असहज महसूस कर रहे थे रास्ते में उनकी भाजपा के दिल्ली के बड़े नेताओ से मोबाइल के जरिए चर्चा भी होती रही आखिर उन्होंने बॉर्डर पर ही मुझे एक कागज देकर कहा तत्काल तुम गडरा जाकर यह पत्र दिल्ली फेक्स करदो और इस पत्र को अभी नहीं रास्ते में ही पड़लेना और सुनो वापसी में गडरा के लड्डू भी दो तीन पैकेट ले आना में कुछ समझा नहीं उस समय हमारे पास क्वालिस गाड़ी थी में गडरा के लिए लोट गया रास्ते में उस पत्र को पढ़कर मेरे को बेहोशी आने लगी पत्र में चतुर्वेदी जी का अध्यक्ष पद से विनम्रता पूर्वक त्यागपत्र था पत्र पढ़कर मेरा मन कुछ अनिर्णय की स्थति में आया सोचने लगा बहाना बना दु की फेक्स की दुकान नहीं मिली या लाइट नहीं थी परन्तु साथ ही में यह भी जानता था की यह बहाना नहीं चलेगा खैर मेने दिल्ली फेक्स करदिया और उनके आदेशानुसार लड्डू भी खरीद लिए जैसे ही में बॉर्डर पर वापस पहुंचा गाड़ी देख कर चतुर्वेदी जी पास आये और पूछने लगे कर आये काम फेक्स की ok रिपोर्ट कहा हैंl रिपोर्ट देखने के बाद कहा लाओ लड्डू खिलाओ और बोले ज्यो की त्यों धरदी चददरिया उनके चेहरे पर नहीं तो कोई तनाव था और नहीं कोई अफ़सोस या दुःख बॉर्डर पर एकत्रित कार्यकर्ताओ को भी यह पता नहीं था की जीन नेता के साथ हम खड़े हैं वे अब निवर्तमान अध्यक्ष हैं l इस सारे घटना क्रम का केवल प्रकाश जी को ही मालूम था करीब दो घंटे बाद मेरे द्वारा ही मिडिया को चतुर्वेदी जी के त्याग पत्र की जानकारी दी गई त्याग पत्र देकर हमने जसवंत सिंह जी का स्वागत करने के बाद जोधपुर पहुंचकर संघ कार्यालय में भोजन किया मेने इस दौरान देखा की कुर्सी जाने के बाद भी चतुर्वेदी जी एक संत की तरह आनंदित थे l


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