नयी शिक्षा नीति, नये भारत का निर्माण करेगी
नयी शिक्षा नीति, नये भारत का निर्माण करेगी
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट की बैठक हुई। कैबिनेट में नयी शिक्षा नीति को मंजूरी प्रदान कर दी गयी। देश को शिक्षा नीति का नवीनीकरण करने में तीन दशक से भी ज्यादा का समय लगा। नरेन्द्र मोदी सरकार ने पद्भार ग्रहण किया तो नई शिक्षा नीति लाने के लिए प्रयास आरंभ हुए। लोगों से सुझाव मांगे गये और दो लाख से ज्यादा सुझाव भारत सरकार को प्राप्त हुए। इन सुझावों के बाद इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने विचार किया और नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार कर उसको सरकार के सुपुर्द किया। सरकार ने इस प्रारूप की समीक्षा के उपरांत इसे लागू करने की घोषणा कर दी। नई नीति बच्चों पर पढ़ाई का बोझ भी कम करेगी। बच्चों को अब केवल केवल तीसरी, पाँचवी और आठवी कक्षा में परीक्षा देंगे। इसके उपरांत नियमित रूप से परीक्षाओं का आयोजन होगा। पीएचईडी के लिए एमफिल की योग्यता को भी हटा दिया गया है।
यह वो शिक्षा नीति है जो युवाओं के सपनों को पूरा करेगी। विदेशी भाषा के अध्ययन के लिए अब दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में नहीं जाना होगा। जिलास्तर पर भी यह शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी।अब स्कूली शिक्षा में भी विदेशी भाषा का अध्ययन करने का अवसर मिलेगा। पहले यह कॉलेज शिक्षा में ही उपलब्ध था। हॉयर एज्युकेशन में भारत का रिकॉर्ड बहुत बढिया नहीं था। जो आकड़े हैं वो बताते हैं कि स्कूली शिक्षा ग्रहण करने वाले मात्र 27 प्रतिशत बच्चे ही कॉलेज में प्रवेश लेते थे। अब 50 प्रतिशत बच्चों को हॉयर एज्युकेशन तक लाने के लिए प्रयास होंगे। इसके लिए जीडीपी का बजट भी 6 प्रतिशत खर्च किया जायेगा जो अब तक केन्द्र व राज्य सरकारें मिलाकर मात्र 4.3 प्रतिशत ही खर्च कर पाती थीं।
विदेशी विश्वविद्यालय अब भारत में कैम्पस स्थापित कर सकेंगे।
नई शिक्षा नीति में अब कक्षा 6 से ही छात्रों को कोडिंग की शिक्षा दी जायेगी।
नई शिक्षा नीति जो बदलेगी बच्चों की तकदीर
नई शिक्षा नीति में पाँचवी क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी। हालांकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा।साल 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% जीईआर (Gross Enrolment Ratio) के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फ़ॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है।
अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा। इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापनी की जाएगी।
स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 का नया पाठयक्रम संरचना लागू किया जाएगा जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें अब तक दूर रखे गए 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है।
नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी। इसके तहत छात्रों की शुरुआती स्टेज की पढ़ाई के लिए तीन साल की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है। अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पाँचवी क्लास को रखा गया है। इसके बाद मिडिल स्कूल अर्थात 6-8 कक्षा में सब्जेक्ट का इंट्रोडक्शन कराया जाएगा।
सभी छात्र केवल तीसरी, पाँचवी और आठवी कक्षा में परीक्षा देंगे। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पहले की तरह जारी रहेगी। लेकिन बच्चों के समग्र विकास करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा। एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र 'परख (समग्र विकास के लिए कार्य-प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) एक मानक-निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा।पढ़ने-लिखने और जोड़-घटाव (संख्यात्मक ज्ञान) की बुनियादी योग्यता पर ज़ोर दिया जाएगा. बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान की प्राप्ति को सही ढंग से सीखने के लिए अत्यंत ज़रूरी एवं पहली आवश्यकता मानते हुए 'एनईपी 2020' में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा 'बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन' की स्थापना किए जाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
एनसीईआरटी 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (एनसीपीएफ़ईसीसीई) के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित करेगा।
स्कूलों में शैक्षणिक धाराओं, पाठ्येतर गतिविधियों और व्यावसायिक शिक्षा के बीच ख़ास अंतर नहीं किया जाएगा।
सामाजिक और आर्थिक नज़रिए से वंचित समूहों (SEDG) की शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा।
शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय प्रोफ़ेशनल मानक (एनपीएसटी) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक विकसित किया जाएगा, जिसके लिए एनसीईआरटी, एससीईआरटी, शिक्षकों और सभी स्तरों एवं क्षेत्रों के विशेषज्ञ संगठनों के साथ परामर्श किया जाएगा।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. इसका मतलब है कि रमेश पोखरियाल निशंक अब देश के शिक्षा मंत्री कहलाएंगे.
जीडीपी का छह फ़ीसद शिक्षा में लगाने का लक्ष्य जो अभी 4.43 फ़ीसद है।
नई शिक्षा का लक्ष्य 2030 तक 3-18 आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है।
छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे. इसके लिए इसके इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी। इसके अलावा म्यूज़िक और कला को बढ़ावा दिया जाएगा। इन्हें पाठयक्रम में लागू किया जाएगा।
उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा। लॉ और मेडिकल शिक्षा को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा।
एचईसीआई के चार स्वतंत्र वर्टिकल होंगे- विनियमन के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (एनएचईआरसी), मानक निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी), वित पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) और प्रत्यायन के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी)।
उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फ़ीसद GER (Gross Enrolment Ratio) पहुंचाने का लक्ष्य है। फ़िलहाल 2018 के आँकड़ों के अनुसार GER 26.3 प्रतिशत है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी।
आवश्यक बात :
भारत 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी का स्वामी होगा। इसका 6 प्रतिशत भारत शिक्षा पर खर्च करेगा। संभवत: पूरे दक्षिण एशिया के देश मिलकर जितनी राशि खर्च नहीं करेंगे, उससे अधिक राशि अकेला भारत देश खर्च करेगा। इससे भारतीय शिक्षा का ढांचा ही बदल जायेगा।
भारतीयों के लिए आज महानतम खुशी का दिन था। एक तरफ हम नई शिक्षा नीति को लागू कर रहे थे तो दूसरी तरफ फ्रांस से नये लड़ाकू विमान राफेल भारत पहुंच गये। 22 सालों बाद भारतीय वायुसेना को नये विमान मिले हैं। सेना कई सालों से आधुनिकीकरण की मांग कर रही थी। इससे भारत की रक्षा क्षमता में ही नहीं बल्कि युद्ध की स्थिति में दुश्मन को नेस्तनाबूद करने की शक्ति में भी भारी इजाफा होगा।
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