नशा
" *नशा* "
कोई है मगन मस्त दौलत के खातिर ,
कोई खुद में डूबा है शोहरत के खातिर ,
कोई प्यार की आग में जल रहा ,
कोई शत्रुता में खतम हो रहा ,
न संतुष्टि है न संतोष है ,
ये सब नशे का ही तो दोष है ,
ना चैन है ना सुकूँ है कभी ,
फंसे हैं नशे में सभी के सभी ,
न रिश्तों की परवाह न दुनिया का डर ,
सभी दोस्त दुश्मन से हो बेखबर ,
किसी को नहीं जोश में होश है ,
हर शख्स मद में मदहोश है ,
कोई लुट गया है,शान में ,
कोई घुट रहा है,अपमान में ,
अभी हों ना हों पर थे तो कभी ,
फंसे हैं नशे में सभी के सभी ,
ग्रसित लोग माया से सब हैं यहां ,
धरम और करम की है चर्चा कहाँ ,
प्रवचन में ही बस दया दान है ,
धन से ही तुलता यहां मान है ,
आध्यात्म पर भारी भौतिकता है ,
मिल गई खाक में सारी नैतिकता है ,
क्षमा बन गई डर की पर्याय है ,
बस पूजी जाती यहां आय हैं ,
हुई क्षीण गरिमा सभी की तभी ,
फंसे हैं नशे में सभी के सभी
. (हनुमानसिंह राठोड़)
8696536821
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