जाने और समझे ज्येष्ठ महीने एवं उसके प्रभाव को
जाने और समझें "ज्येष्ठ महीने एवम उसके प्रभाव को"
वैदिक हिन्दू पंचांग के अनुसार शुक्रवार, 8 मई शुक्रवार से ज्येष्ठ मास शुरू हो जाएगा।
ज्येष्ठ मास का नाम सुनते ही तपती हुई दुपहरी का चित्र दिमाग में जरूर बनता हैं। बनेगा भी क्यों नहीं इस मास में झूलसा देने वाली गर्मी जो पड़ती है। गर्मियां वैसे तो फाल्गुन मास के उतरते समय ही शुरू हो जाती हैं फिर चैत्र और वैशाख पार करने पर जब ज्येष्ठ मास का आरंभ होता है तो गर्मी का मौसम ऊफान पर होता है। इसलिये हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्येष्ठ में जल का महत्व बहुत अधिक माना है।ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि जल को समर्पित व्रत और त्यौहार भी इसी मास में मनाये जाते हैं। गर्मियों में पानी की किल्लत से हर कोई परेशान रहता है यही कारण हैं कि बड़े बुजूर्गों ने इन पर्व त्यौहारों के जरिये पानी का महत्व समझाने का प्रयास किया है। जल के महत्व को बताने वाले ज्येष्ठ मास की शुुरुआत 8 मई से 2020 हो रही है, 5 जून को 2030 ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ ही ज्येष्ठ माह की समाप्ति होगी।
ज्येष्ठ माह का नाम ज्येष्ठा नक्षत्र पर आधारित है। मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है इसी कारण इस महीने का नाम ज्येष्ठ रखा गया है।
जानिए कैसे पड़ा इस मास का नाम ज्येष्ठ?
ज्येष्ठ हिंदू पंचाग के अनुसार चंद्र मास का तीसरा महीना होता है चैत्र और वैशाख मास के बाद आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मास अक्सर मई और जून के महीने में पड़ता है। जैसा कि सभी चंद्र मासों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं ज्येष्ठ माह भी ज्येष्ठा नामक नक्षत्र पर आधारित है।
सम्भव हो तो ज्येष्ठ महीने में संभव हो तो एक समय भोजन करना चाहिए। महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है-“ज्येष्ठामूलं तु यो मासमेकभक्तेन संक्षिपेत्। ऐश्वर्यमतुलं श्रेष्ठं पुमान्स्त्री वा प्रपद्यते।।” अर्थात ज्येष्ठ के महीने में जो व्यक्ति एक समय भोजन करता है वह धनवान होता है। दरअसल इससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है और चिकित्सा में धन नष्ट नहीं होता है।
इस माह में वातावरण और शरीर में जल का स्तर गिरने लगता है, अतः जल का सही और पर्याप्त प्रयोग करना चाहिए। इस माह में सन स्ट्रोक और खान-पान की बीमारियों से बचाव आवश्यक है। इस माह में हरी सब्जियां, सत्तू, जल वाले फलों का उपयोग काफी लाभदायक होता है। इसके अलावा इस माह में दोपहर का विश्राम करना भी लाभदायक माना गया है।
वर्तमान हालात में लॉकडाउन का असर वैवाहिक कार्यक्रमों पर भी हो रहा है। सबसे अधिक समस्या परिवार में जेष्ठ पुत्र और जेष्ठ पुत्रियों के विवाह के लिए हो रही है। कल 8 मई 2020 से जेष्ठ का महीना शुरू हो जाएगा। इस महीने में जेष्ठ लड़के और जेष्ठ लड़की का विवाह नहीं हो पाएगा। जिन जेष्ठ युवक-युवती के विवाह मुहूर्त जेष्ठ माह के बाद नहीं है, ऐसे लोगों के विवाह फिर देव उठनी एकादशी या पूरे एक साल बाद होंगे।
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में तो कोई खास पर्व नहीं है लेकिन शुक्ल पक्ष में जल के महत्व को बताने वाले दो महत्वपूर्ण त्यौहार गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी पड़ते हैं। गंगा नदी का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। क्योंकि गुणों के मामले में गंगा नदी का स्थान सर्वोपरि माना जाता है।
अपरा एकादशी – एकादशियां तो सभी पावन मानी जाती हैं लेकिन ज्येष्ठ मास की कृष्ण एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अपरा एकादशी का त्यौहार 18 मई को है।
ज्येष्ठ अमावस्या – ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसका एक कारण तो यह है कि अमावस्या तिथि पूर्वजों की शांति के दान-तर्पण आदि के लिये बहुत ही शुभ मानी जाती है। दूसरा ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व इसलिये बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन शनिदेव की जयंती मनाई जाती है तो वहीं वट सावित्री का व्रत भी ज्येष्ठ अमावस्या को ही रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या 22 मई 2020 को है।
गंगा दशहरा – गंगा दशहरा का त्यौहार ज्येष्ठ मास में मनाया जाने वाला विशेष त्यौहार है। यह त्यौहार मोक्षदायिनी मां गंगा के महत्व को बतलाता ही है साथ ही जल के सरंक्षण का संदेश भी देता है। गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व 1 जून को है।
निर्जला एकादशी – निर्जला एकादशी का उपवास काफी कठिन होता है। इस दिन जल की एक बूंद तक व्रती को ग्रहण नहीं करनी होती साथ ही उसे दूसरों को जल पिलाना होता है। सब्र संतोष और जल संरक्षण सहित जल के महत्व को समझने का यह उपवास ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है। निर्जला एकादशी सभी एकादशियों में श्रेष्ठ मानी जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार निर्जला एकादशी का उपवास 2 जून को है। इसी तिथि को गायत्री जयंती भी मनाई जाती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा/ वट पूर्णिमा व्रत/ कबीरदास जयंती – वट पूर्णिमा व्रत, वट सावित्री व्रत की तरह ही है। इस दिन भी विवाहित महिलाएं सुख समृद्धि और अपने पति की दीर्घायु के लिये उपवास रखती हैं लेकिन वट पूर्णिमा व्रत मुख्यत: महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में यह ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है जबकि उत्तर भारत के राज्यों में यह ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाता है। वट पर्णिमा का व्रत 4 जून को रखा जायेगा। हालांकि 5 जून को भी ज्येष्ठ पूर्णिमा मनाई जायेगी, इसी दिन भक्तिकाल के प्रमुख संत कबीरदास जी की जयंती भी मनाई जाती है।
समझें ज्येष्ठ महीने में जल का महत्व को ---
ज्येष्ठ माह में पानी का वाष्पीकरण तेजी से होता है जिसके कारण से नदियां और तालाब सूख जाते हैं। हिन्दू सभ्यता में इस महीने जल के संरक्षण का विशेष जोर दिया जाता है। ज्येष्ठ महीने में गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी जैसे व्रत भी रखे जाते हैं। ये व्रत प्रकृति में जल को बचाने का संदेश देते हैं। गंगा दशहरा में नदियों की पूजा और निर्जला एकादशी में बिना जल का व्रत रखा जाता ।
जाने और समझें ज्येष्ठ माह में क्या करें और क्या नहीं?
– इस माह में दिन में सोना अच्छा नहीं माना जाता। एक कहावत अनुसार ज्येष्ठ के महीने में दिन में सोने से व्यक्ति रोगी बनता है। साथ ही इस माह में दोपहर में चलना भी मना होता है। क्योंकि इस समय सूर्य का प्रकाश काफी तेज होता है जिस कारण धूप में चलने से व्यक्ति बीमार हो सकता है।
– इस महीने में बैंगन नहीं खाया जाता। कहा जाता है कि जिनकी सबसे बड़ी संतान जीवित हों उन्हें बैंगन खाने से बचना चाहिए। इससे संतान को कष्ट मिलता है।
– इस महीने में सबसे बड़े पुत्र और सबसे बड़ी पुत्री का विवाह नहीं किया जाता। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस महीने इनका विवाह करने से वैवाहिक जीवन में अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं।
– महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है-“ज्येष्ठामूलं तु यो मासमेकभक्तेन संक्षिपेत्। ऐश्वर्यमतुलं श्रेष्ठं पुमान्स्त्री वा प्रपद्यते।।” अर्थात ज्येष्ठ के महीने में जो व्यक्ति एक समय भोजन करता है वह धनवान होता है। इसलिए कहा गया है कि ज्येष्ठ के महीने में संभव हो तो एक समय भोजन करना चाहिए।
– इस महीने में तिल का दान करना काफी फलदायी माना गया है। कहा जाता है कि ऐसा करने से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
– ये महीना हनुमानजी की पूजा के लिए भी काफी शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इसी महीने में हनुमानजी की मुलाकात अपने प्रभु श्रीराम से हुई थी। इस माह में बड़ा मंगलवार भी मनाया जाता है।
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