जानिए वैशाख माह का महत्व क्या करें, क्या न करें इस महीने में
जानिए वैशाख माह का महत्व क्या करें, क्या न करें इस महीने में !
भारतीय हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास सृष्टि की शुरुआत के पंद्रह दिन बाद शुरू होता है। यह पवित्र महीना व्यक्ति को व्यक्ति से समुदाय में उन्मुख होने के लिए प्रेरित करता है। पुराणों में इस महीने को जप, तप, दान का महीना कहा गया है। वैशाख महीने की शुरुआत में, तपिश का माहौल तैयार हो जाता है, इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से, इस महीने में, वरुण देवता का विशेष महत्व है।
स्कंद पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने वैशाख महीने को सभी महीनों में सबसे अच्छा बताया है। जैसे सतयुग जैसा कोई दूसरा युग नहीं है। वेदों जैसा कोई शास्त्र नहीं। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख का महीना जैसा कोई महीना नहीं होता। यह महीना, माँ की तरह, हमेशा सभी जीवित प्राणियों को सभी वांछित चीजें प्रदान करने वाला है। संपूर्ण देवता द्वारा पूजित धर्म यज्ञ, कर्म और तपस्या का सार है। जैसे वैदिक विद्या, मंत्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, प्रिय वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगा, नदियों में गंगा, तेजस में सूर्य, अस्त्र-शास्त्रों में चक्र, सुवर्ण में सुवर्ण धातु, वैष्णव शिव और रत्न में कौस्तुभमणि है, इसी तरह वैशाख माह धर्म के साधनों में पिछले महीनों के दौरान सबसे अच्छा है। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इस महीने में सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए।
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ब्रह्माजी वैशाख को सर्वश्रेष्ठ मानते थे---
पुराणों के अनुसार, वैशाख के महीने में, सभी भगवान और देवता भगवान विष्णु के कल्याण के लिए पानी में रहते हैं। एक मार्ग के अनुसार, जब लंबे समय के ध्यान के बाद राजा अम्बरीश गंगा तीर्थ की ओर जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देवर्षि नारद को देखा। राजा ने विनयपूर्वक देवर्षि से पूछा – “देवर्षि! भगवान ने हर चीज में एक श्रेष्ठ कोटा बनाया है। लेकिन जो सबसे अच्छा है; इस पर नारद ने कहा कि जब समय विभाजित हो रहा था, उस समय ब्रह्मा जी ने वैशाख माह को बहुत पवित्र साबित किया था। वैशाख माह सभी प्राणियों की इच्छा को सिद्ध करता है। धर्म, त्याग, कर्म और व्यवस्था का सार वैशाख मास में है। संपूर्ण देवताओं द्वारा पूजा की जाती है और भगवान विष्णु द्वारा सबसे अधिक प्रेम किया जाता है।
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वैशाख माह शुरु, पूरे माह तुलसी पूजन, स्नान-दान के साथ ये काम करना होगा शुभ---
हमारी संस्कृति में वैशाख मास का बहुत महत्व है। शास्त्रों में वैशाख मास के दौरान किये जाने वाले बहुत-से यम-नियम आदि का जिक्र भी किया गया है, यानी आज से शुरू होकर वैशाख मास की पूर्णिमा तक ये यम-नियम आदि चलेंगे। अतः वैशाख मास का क्या महत्व है, इस दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए और उन नियमों का पालन करने से आपको कौन-से शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
शास्त्रों में वैशाख पूर्णिमा का भी बड़ा ही महत्व है। विशाखा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इसे वैशाख पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि वैशाख मास की पूर्णिमा को ही ब्रह्मा जी ने काले और सफेद तिल उत्पन्न किये थे, जिसके उपलक्ष्य में वैशाख पूर्णिमा को तिल युक्त जल से स्नान करने, अग्नि में तिलों की आहुति देने और तिल तथा मधु, यानी शहद का दान करने का विधान है। इस दिन ये सब कार्य करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियां ही खुशियां आती हैं और आस-पास सब लोगों के साथ प्रेम भाव बना रहता है। आपको बता दूं कि वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस बार वैशाख मास की पूर्णिमा 07 मई 2020, गुरुवार को है।
वैशाख मास के दौरान भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दौरान भगवान विष्णु की माधव नाम से पूजा की जाती है। जानकारी के लिये बता दें कि वैशाख मास का एक नाम माधव मास भी है। स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड में भी आया है-
न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।।
अर्थात् माधवमास, यानी वैशाख मास के समान कोई मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। अतः माधव मास का बड़ा ही महत्व है। इस माह के दौरान आपको ऊँ माधवाय नमः.. मंत्र का नित्य ही कम से कम 11 बार जप करना चाहिए। (20 अप्रैल राशिफल: कर्क और तुला राशि के जातक रहें संभलकर वहीं अन्य राशियों के लिए आज का दिन अच्छा)
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वैशाख मास के दिनों में जरुर करें ये काम---
वैशाख मास के दौरान किये जाने वाले कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण है - तुलसीपत्र से श्री विष्णु पूजा। जी हां, आज से लेकर पूरे 30 दिनों तक तुलसी की पत्तियों से भगवान विष्णु का पूजन किया जाना चाहिए। इससे व्यक्ति को करियर में तरक्की के साथ ही अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। इसके अलावा उस व्यक्ति के घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
तुलसी पूजन के साथ ही इस दौरान घर आंगन में तुलसी का पौधा लगाना भी शुभ होता है। इस दौरान घर, मन्दिर या कार्यस्थल पर तुलसी का पौधा लगाने से और उचित प्रकार से पौधे की देखभाल करने से व्यक्ति की सफलता सुनिश्चित होती है, लिहाजा आप जीवन में लगातार आगे बढ़ते जायेंगे।
वैशाख या माधवमास के दौरान जप, तप, हवन के अलावा स्नान और दान का भी विशेष महत्व है। इस दौरान जो व्यक्ति श्रद्धाभाव से जप, तप, हवन, स्नान, दान आदि शुभकार्य करता है, उसका अक्षयफल उस व्यक्ति को प्राप्त होता है। जिस प्रकार कार्तिक मास के दौरान सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद भगवान की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार वैशाख मास के दौरान भी सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है, यानी उसे जीवन में तरक्की ही तरक्की मिलती है।
वैशाख मास के दौरान घट दान, यानी मिट्टी का घड़ा दान करने का भी विधान है। इस दौरान अगर आप किसी मन्दिर में, बाग-बगीचे में, स्कूल में या किसी सार्वजनिक स्थान पर पानी से भरा मिट्टी का घड़ा रखेंगे, तो आपको बहुत ही पुण्य फल प्राप्त होंगे। इससे आपके जीवन में खुशहाली बनी रहेगी।
शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के दौरान अगर कुछ विशेष तिथियों में महत्वपूर्ण कार्यों की बात करें, तो वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए। माना जाता है कि इस तिथि को महर्षि जह्नु ने अपने दाहिने कान से गंगा जी को बाहर निकाला था। इस दिन मध्याह्न के समय गंगा जी की पूजा की जाती है।
वैशाख शुक्ल सप्तमी के बाद अष्टमी तिथि को मां दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की प्रतिमा को कपूर और जटामासी से युक्त जल से स्नान कराना चाहिए तथा स्वयं आम्ररस से, यानी आम के रस से स्नान करना चाहिए। आपको बता दूं कि श्री बगलामुखी जयंती भी 01 मई 2020 को ही मनायी जायेगी। इस दिन दस महाविद्याओं में से एक देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है, जबकि दस महाविद्याओं में से ही एक देवी छिन्नमस्ता की जयंती इसी महीने में 06 मई बुधवार के दिन मनायी जायेगी और उसी दिन नृसिंह चतुर्दशी व्रत भी किया जायेगा।
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दान का महीना है वैशाख-
इस महीने में, शिवलिंग पर जल चढ़ाने या गलंतिका (मटकी को लटकाना) को टांगने का विशेष गुण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में प्याज डालना, छायादार वृक्षों की रक्षा करना, पशु-पक्षियों के भोजन की व्यवस्था करना, राहगीरों को पानी पिलाना, ऐसे कार्य मनुष्य के जीवन को समृद्धि के मार्ग पर ले जाते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, इस महीने में जल के दान का अत्यधिक महत्व है, अर्थात कई तीर्थों को करने से प्राप्त होने वाला फल वैशाख के महीने में जल दान करने से ही प्राप्त होता है। इसके अलावा, छाया चाहने वालों और प्रशंसक प्रशंसकों के लिए छतरियों का दान करने से प्रशंसक की इच्छा रखने वालों को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आशीर्वाद मिलता है। जो विष्णुप्रिया वैशाख में पादुका दान करता है वह यमदूतों का तिरस्कार करके विष्णुलोक जाता है।
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जानिए वैशाख के महीने में श्री श्री तुलसी जल दान का महत्व--
वैशाख के महीने में क्योंकि सूर्य के ताप में वृद्धि हो जाती है, इसलिए विष्णु के भक्त गणों को जल दान करने से श्रीहरि अत्यंत अत्यंत प्रसन्न होते हैं। भगवान श्री हरि कृपा करके उनसे अभिन्न तुलसी वृक्ष को जल दान का एक सुयोग अथवा शुभ अवसर प्रदान करते हैं।
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लेकिन तुलसी को जल दान क्यों करना चाहिए ?
तुलसी श्रीकृष्ण की प्रेयसी हैं, उनकी कृपा के फल से ही हम भगवान श्री कृष्ण के सेवा का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। तुलसी देवी के संबंध में कहा गया है तुलसी के दर्शन मात्र से ही संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं , जल दान करने से यम भय दूर हो जाता है, रोपण करने से यानी उनको बोने से उनकी कृपा से कृष्ण भक्ति वृद्धि होती है और श्रीहरि के चरण में तुलसी अर्पण करने से कृष्ण प्रेम प्राप्त होता है ।
पद्मपुराण के सृष्टि खंड में वैष्णव श्रेष्ठ श्री महादेव अपने पुत्र कार्तिक को कहते है
" सर्वेभ्य पत्र पुस्पेभ्य सत्यमा तुलसी शीवा सर्व काम प्रदत्सुतधा वैष्णवी विष्णु सुख प्रिया "
समस्त पत्र और पुष्प में तुलसी सर्वश्रेष्ठ हैं। तुलसी सर्व कामना प्रदान करने वाली, मंगलमय, श्रुधा, शुख्या, वैष्णवी, विष्णु प्रेयसी एवं सभी लोको में परम शुभाय है।
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भगवान शिव कहते हैं ,
"यो मंजरी दलरे तुलस्या विष्णु मर्त्ये तस्या पुण्य फलम कर्तितुम नैव शक्तते
तत्र केशव सानिध्य यात्रस्ती तुलसी वनम तत्रा ब्रह्म च कमला सर्व देवगने "
हे कार्तिक! जो व्यक्ति भक्ति भाव से प्रतिदिन तुलसी मंजरी अर्पण कर भगवान श्रीहरि की आराधना करता है , यहां तक कि मैं भी उसके पुण्य का वर्णन करने में अक्षम हूं। जहां भी तुलसी का वन होता है भगवान श्री गोविंद वही वास करते हैं और भगवान गोविंद की सेवा के लिए लक्ष्मी ब्रह्मा और सारे देवता वही वास करते हैं।
मूलतः भगवान श्री कृष्ण ने जगत में बध जीव गणों को उनकी सेवा करने का शुभ अवसर प्रदान करने के लिए , भगवान श्री कृष्ण ही तुलसी रूप में आविर्भूत हुए है, एवं उन्होंने तुलसी पौधे को सर्वाधिक प्रिय रूप में स्वीकार किया है । पताल खंड में यमराज ब्राह्मण को तुलसी की महिमा का वर्णन करते हैं
वैशाख में तुलसी पत्र द्वारा श्री हरि की सेवा के प्रसंग में वह कहते हैं कि जो व्यक्ति संपूर्ण वैशाख मास में अनन्य भक्ति भाव से तुलसी द्वारा त्री संध्या भगवान श्रीकृष्ण की अर्चना करता है उस व्यक्ति का और पुनर्जन्म नहीं होता ।
तुलसी देवी की अनंत महिमा अनंत शास्त्रों में अनंत शास्त्रों में वर्णित है लेकिन यह महिमा असीमित है अनंत है
ब्रह्मवैवर्त पुराण में प्रकृति खंड में ऐसा वर्णन है
"शिरोधार्य च सर्वे सामीप सताम विश्व पावनी जीवन मुक्ता मुक्तिदायिनी चा भजेताम हरि भक्ति दान "
जो सबके शिरोधार्य है, उपासया हैं, जीवन मुक्ता है, मुक्ति दायिनी है और श्री हरि की भक्ति प्रदान करने वाली हैं । वह समस्त विश्व को पवित्र करने वाली हैं , ऐसी समस्त विश्व को पवित्र करने वाली विश्व पावनी तुलसी देवी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।
समग्र वैदिक शास्त्रों के संकलन करने वाले तथा संपादक श्री व्यास देव तुलसी की महिमा करते हुए पद्मपुराण के सृष्टि खंड में कहते
"पूजन किर्तने ध्याने परोपने धारने कलो तुलसी ध्यते पापं स्वर्ग मोक्ष दादाती
उपदेशम दृश्य दृष्या स्यम आचरते पुनः
स याति परम अनुस्थनाम माधवसे के कनम"
तुलसी देवी की पूजा, कीर्तन , ध्यान, रोपण और धारण पाप को नाश करने वाला होता है और इससे परम गति प्राप्त होती है ।
जो व्यक्ति किसी अन्य को तुलसी द्वारा भगवान श्री हरि की अर्चना करने का उपदेश देता है और स्वयं भी अर्चना करता है वही वह श्री माधव के धाम में गमन करता है । केवल तुलसी देवी के नाम उच्चारण मात्र से ही श्रीहरि प्रसन्न हो जाते हैं और इसके परिणाम स्वरूप पाप समूह नष्ट हो जाता है और अक्षय पुण्य प्राप्त होता है ।
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पदम् पुराण के ब्रह्म खंड में कहां गया है--
"गंगाताम सरिता श्रेष्ठ: विष्णु ब्रह्मा महेश्वरा:
देव: तीर्थ पुष्करा तेश्थ्यम तुलसी दले"
गंगा आदि समस्त पवित्र नदी एवं ब्रह्मा विष्णु महेश्वर पुष्कर आदि समस्त तीर्थ सर्वथा तुलसी दल में विराजमान रहते हैं ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि समस्त पृथ्वी में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ है
वह तुलसी उद्विग्न के मूल में तीर्थ निवास करते हैं । तुलसी देवी की कृपा से भक्तवृंद कृष्ण भक्ति प्राप्त करते हैं और वृंदावन वास की योग्यता अर्जित करते हैं । वृंदा देवी तुलसी देवी समस्त विश्व को पावन करने में सक्षम है और सब के द्वारा ही पूज्य है ।
समस्त पुष्पों के मध्य वो सर्वश्रेष्ठ हैं और श्री हरि सारे देवता ब्राह्मण और वैष्णव गन का आनंद का वर्धन करने वाली हैं । वे अतुलनीय और कृष्ण की जीवन स्वरूपनी है । जो नित्य तुलसी सेवा करते हैं वह समस्त क्लेश से मुक्त होकर अभीष्ट सिद्धि प्राप्त करते हैं । अतः श्रीहरि की अत्यंत प्रिय तुलसी को जल दान अवश्य करना चाहिए ।
इसके अलावा इस समय भगवान से अभिन्न प्रकाश श्री शालिग्राम शिला को भी जल दान की व्यवस्था की जाती है ।
शास्त्रों में तुलसी देवी को जल दान करने पर तुलसी के मूल में जो जल बच जाता है उसका भी विशेष महत्व वर्णित किया गया है ।
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इस विषय में एक कहानी बताई गई है-
एक समय एक वैष्णव तुलसी देवी को जल प्रदान कर और परिक्रमा करके घर वापस जा रहे थे कि कुछ समय पश्चात एक भूखा कुत्ता वहां आकर तुलसी देवी के मूल में पड़े हुए जल था उसको पीने लगा लेकिन तभी वहां एक बाघ आया और उसको कहने लगा दुस्त कुकुर तुम क्यों मेरे घर में खाना चोरी करने आए हो और चोरी भी करना ठीक है लेकिन मिट्टी का बर्तन क्यों तोड़ कर आए हो तुम्हारे लिए उचित दंड केवल मृत्युदंड है । इसके उपरांत बाग उस कुत्ते को वही मार देता है और तभी यमदूत के गण उस कुत्ते को लेने आते हैं। लेकिन उसी समय विष्णु दूतगण वहां आते है और उनके रोकते है और कहते है यह कुत्ता पूर्व जन्म में जघन्य पाप करने के कारण नाना प्रकार के दंड पाने के योग्य हो गया था लेकिन केवल तुलसी के पौधे के मूल में पड़े जल का पान करने के फल से उसका समस्त पाप नष्ट हो चुका है और तो और वह विष्णु गमन करने की योग्यता अर्जित कर चुका है । अतः वह कुत्ता सुंदर रूप को प्राप्त करता है और वैकुंठ के दूत गणों के साथ भगवद धाम गमन करता है ।
जगत जीवो को कृपा करने के उद्देश्य से ही भगवान के अंतरंग शक्ति श्रीमती राधारानी का प्रकाश वृंदा तुलसी देवी के रूप में इस जगत में प्रकट हुआ है । उसी प्रकार भगवान श्री हरि भी बध जीवो को माया के बंधन से मुक्त करने के लिए विचित्र लीला के माध्यम से अपने अभिन्न स्वरुप शालिग्राम शिला रूप में प्रकाशित हुए हैं । चारों वेदों के अध्ययन से लोगों को जो फल प्राप्त होता है केवल शालिग्राम शिला के अर्चना करने मात्र से ही वह पूर्ण फल प्राप्त किया जाना संभव है । जो शालिग्राम शिला के स्नान जल , चरणामृत आदि को नित्य पान करते हैं वह महा पवित्र होते हैं एवं जीवन के अंत में भगवद धाम गमन करते हैं ।
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बैसाख स्नान के नियम----
वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं। बैशाख स्नान करने वाले साधक को यह प्रतिज्ञा लेनी चाहिए – “हे मधुसूदन! हे देवेश्वर माधव! मैं वैशाख के महीने में सुबह स्नान करूंगा जब सूर्य मेष राशि में स्थित होगा, तो आप इसे पूरा कर लेंगे। यह महीना संयम का महीना है। , अहिंसा, आध्यात्मिकता, आत्म-शिक्षा और सार्वजनिक सेवा। प्रपत्र को ध्यान से देखा जाना चाहिए।
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