अपने बच्चे के समग्र विकास और मानसिक योग्यता की क्षमता बढ़ाएं: प्रो. संजीव पी. साहनी
कार्यालय संवाददाता
जयपुर। सकारात्मक परवरिश सेमीनार के संदर्भ में प्रो. (डॉ.) संजीव पी. साहनी, विख्यात व्यवहार वैज्ञानिक और जिंदल स्कूल ऑफ बिहेवियरल साइंसेज (जीआईबीएस) के प्रधान निदेशक द्वारा वार्ता आयोजित की गई है। इस वार्ता में बच्चों को एक बेहतर और अधिक सफल मनुष्य बनाने के लिए कुछ मापदंडों और अवधारणाओं पर प्राथमिक बल देने के साथ सकारात्मक परवरिश की आवश्यकता पर चर्चा की जा रही है।
'ऐसा कहा जाता है कि बच्चे अपने मातापिता की छवि होते हैं और परवरिश एक ऐसी कुंजी है जो एक बच्चे के व्यक्तित्व की रूपरेखा तैयार करता है। एक बच्चे का दुनिया को देखने का नजरिया, धारणा और गुण, निस्संदेह उसके माता-पिता से प्रभावित और विकसित होते हैं,' प्रो. (डॉ.) संजीव पी. साहनी ने कहा। दुनिया बदल रही है और ऐसा ही हर समाज
दुनिया बदल रही है और ऐसा ही हर समाज के साथ भी हो रहा है। भारतीय समाज इससे कोई अलग नहीं है। आज की वीयूसीए (अस्थिर, अनिश्चित, जटिल और फुर्तीली) दुनिया में बहुत उथल-पुथल है, जहाँ प्रतिदिन तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। परवरिश करना बहुत कठिन हो गया है। माता-पिता अपने बच्चों के साथ जिस तरह से व्यवहार करते हैं, वो यह निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक है कि बच्चे समस्या को हल करने, निर्णय लेने, लक्ष्य का अनुसरण करने, तनाव को संभालने, अपनी भावनाओं को समझने और नियंत्रित करने, सफलता और असफलताओं से निपटने इत्यादि में क्या तरीका अपनाएंगे। माता-पिता 0-7 सालों की महत्वपूर्ण अवधि के दौरान अपने बच्चे के समग्र विकास में मदद करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों के विकास के ये वर्ष बच्चों की सेहत, भलाई और समग्र प्रक्षेपवक्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। सौभाग्य से, ऐसी कई चीजें हैं जो माता-पिता अपने बच्चों के विकास और बढ़ने में उनकी मदद के लिए कर सकते हैं।
डॉ. साहनी ने माता-पिता के व्यवहार स्वरूपों और बच्चों पर इसके परिणामी प्रभावों पर बल दिया। ये व्यवहार सुसंगत और असंगत दोनों हो सकते हैं। बच्चों पर माता-पिता के असंगत व्यवहार का एक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और परिणामस्वरूप उनके व्यवहार में परिवर्तन आता है। बातचीत करने में बाधाएं हो सकती हैं, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। घर पर, बच्चे कभी-कभी माता-पिता के साथ झगड़े में उलझ जाते हैं, जो कि अपरिहार्य है। बचपन में कुछ मनमुटाव और झगड़े बच्चों को असहमति को सुलझाने के कुछ सकारात्मक तरीके ढूँढने में मदद करते हैं। सम्मान-पूर्वक तरीके से किसी झगड़े को सुलझाना बच्चों को बचपन में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और काबू करने और तदनुसार प्रतिक्रिया देने के सेहतमंद तरीकों में महारथ हासिल करने का आवश्यक कौशल सिखाता है। बच्चों को झगड़े सुलझाने का एक सेहतमंद कौशल सिखाने में अवश्य ही समय लगता है और लगातार कोशिश करते रहने की जरूरत होती है। बच्चे हमेशा यह देखते हैं कि माता-पिता कैसा व्यवहार करते हैं। सामाजिक अधिगम सिद्धांत के अनुसार, लोग दूसरों को देखकर सीखते हैं। बच्चे भी ऐसा ही करते हैं। बच्चे जो सुनते हैं उसे दोहराते हैं, और जो देखते हैं उसकी नकल करते हैं। इस कारण से, माता- पिता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे ध्यान दें कि वो अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं।
करने पर बल दिया गया, जो बच्चों को अपनी ताकतें पहचानने और उनका आदर्श इस्तेमाल करनेय यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी ऊर्जा सही दिशा में उपयोग हो, बच्चों को सही तरीके से संपर्क बनाने और संपर्क तोड़ने कौशल सिखानेय सांस्कृतिक नियमों लैंगिक भूमिकाओं को तलाशने और उन्हें समझने में मदद करता है। यह विभिन्न प्रमाणआधारित रणनीतियों पर चर्चा करता है बच्चों को अपना प्रदर्शन सुधारने में मदद कर सकते हैं।
आत्म-जागरूकता, सही तरीके से काम करके और सकारात्मकता के साथ जीवन बिताना, मानसिक स्वास्थ्य के मुख्य घटक हैं। हमारे बच्चों और युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा अत्यधिक महत्वपूर्ण है ताकि वे अपनी क्षमता का अधिकतम उपयोग करने में सक्षम हो सकें। अन्यथा, अगर कोई व्यक्ति अपने-आप को मानसिक रूप से संभालने में सक्षम ना हो तो चाहे वह कितना भी दक्ष और काबिल क्यों ना हो, जरूर टूट सकता है। यह समझ किसी व्यक्ति के जीवन के हर क्षेत्र, आंतरिक और बाहरी दोनों, में एक पुरस्कृत जीवन जीने के लिए बहुत फयदेमंद हो सकती है। यह समझ लोगों को अपने कौशल का उपयोग करने और अपनी गतिविधियों में भिन्नता लाने का अवसर प्रदान कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य, स्वास्थ्य और मानसिक इच्छा का संयोजन है।
इस क्षेत्र में किए गए शोध से पता चलता है कि जो लोग मानसिक रूप से स्वस्थ हैं, वे उन लोगों की तुलना में कई लाभ प्राप्त करते हैंय दूसरे लोग उन्हें अधिक सकारात्मकता के साथ देखते हैं, हर काम में बेहतर प्रदर्शन और उत्पादकता दिखाते हैं और जटिल परिस्थितियों को बेहतर ढंग से संभालते हैं, जो कम सेहतमंद होते हैं। वे अपने साथियों के दबाव में कम झुकते, कम गलत-व्यहवार दिखाते और कम टूटते हैं। संस्थानों के लिए न केवल इस अवधारणा को लागू करना महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि वे इसे अधिक सकारात्मक तरीके से प्रयोग करें ये सुनिश्चित करने के लिए कि लोग नई धारणाओं या प्रथाओं के प्रति अधिक आशावादी बनें और सामाजिक रूप से खुशहाल और जिम्मेदार नागरिक बनें।
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